संविधान के प्रमुख संशोधन | Pramukh Samvidhan Sanshodhan

संविधान के प्रमुख संशोधन: भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से इसमें अब तक कई संशोधन हो चुके है। हालाँकि संविधान में यूहीं कोई संशोधन नहीं किया जा सकता, भारतीय संविधान में किसी भी संसोधन कने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही किसी भी प्रकार से संसोधन को शामिल किया जाता है। इसका जिक्र भी संविधान में ही किया गया है। आज के इस लेख के माध्यम से हम भारतीय संविधान के प्रमुख संशोधन (Pramukh Samvidhan Sanshodhan) को विस्ता से जानने का प्रयास करेंगे।

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भारतीय संविधान के प्रमुख संशोधन

पहला संसोधन (1951): इस संशोधन के द्वारा नौवी अनुसूची को शामिल किया गया

दूसरा संसोधन (1952): संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित किया गया

7वाॅ संशोधन (1956): राज्यों का पुनर्गठन करके 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों को पुनर्गठित किया गया है।

12वाँ संविधान (1962): इसके द्वारा गोवा, दमन और दीव का भारतीय संघ में विलय किया गया।

14वाॅ संशोधन (1962): पाण्डेचेरी को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारत में विलय किया गया।

21वाँ संशोधन (1967): 8वी अनुसूची में सिंधी भाषा को जोड़ा गया

27वाँ संशोधन (1971): उत्तरी पूर्व क्षेत्र के 5 राज्यों असम,नागालैंड, मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा तथा दो संघीय क्षेत्रो मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश का गठन किया गया। इसके समन्वय और सहयोग के लिए पूर्वोत्तर सीमान्त परिषद् की स्थापना की गई।

36वाँ संशोधन (1975): सिक्किम को भारतीय संघ में 22वे राज्य के रूप में प्रवेश प्रदान किया गया।

42वाँ संशोधन (1976): कुछ विद्वानों के द्वारा इसकी व्यापक प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए इसे लघु संविधान की संज्ञा प्रदान की गई जिसकी प्रमुख बाते कुछ इस प्रकार है:

  • इसके द्वारा संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष समाजवादी और अखण्डता शब्दों को जोडा गया
  • अधिकारो के साथ साथ कर्तव्यों की व्यवस्था करते हुए नागरिको को 10 मौलिक कर्तव्यों को निश्चित किये गए
  • इसके द्वारा शिक्षा, नापतौल, वन और जंगली जानवरो तथा पक्षियों की रक्षा यह सभी विषय राज्य सूची से निकाल कर समवर्ती सूची में रख दिए गए।

44वाँ संशोधन (1978): संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त करके इसे विधिक अधिकार बना दिया गया और व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को शासन के द्वारा आपात काल में भी स्थगित या सीमित नहीं किया जा सकता आदि

52वाँ संशोधन (1985): इस संसोधन के द्वारा संविधान में 10वी अनुसूची जोड़ी गई इसके द्वारा राजनैतिक दल बदल पर कानूनी रोक लगाने की चेष्टा की गई है।

61वाँ संशोधन (1989): मताधिकार के लिए न्यूनतम आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।

73वाँ (1992): संविधान में एक नया भाग 9 तथा एक नई अनुसूची ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी ग और गैर पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

74वाँ (1962): संविधान में एक नया भाग 9 क और एक नई अनुसूची 12वी अनुसूची जोड़कर शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओ को संवैधानिक दर्जा दिया गया।

84वाँ (2001): लोकसभा और विधानसभाओ की सीटों की संख्या में सन 2026 तक कोई छेड़छाड़ नहीं करने सम्बन्धी 84वा संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2002 पारित किया गया निर्चाचन क्षेत्रो का परिसीमन सन 1991 की जनगणना पर आधारित किया गया।

85वाँ (2001): इस संशोधन में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया गया।

91वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2003): इसमें दलबल विरोधी कानून में संसोधन किया गया। इसके अतिरिक्त ये प्रावधान भी किया गया है की केंद्र और राज्य सरकारें अपने अपने मंत्रिमंडल में मंत्रियो की संख्या लोकसभा और विधानसभा की सीटों के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं कर सकती।

92वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2003): इसमें आठवीं अनुसूची में चा और भाषाओ मैथिलि, डोगरी, बोडो और संथाली को जोड़ा गया।

93वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2005): सरकारी शिक्षण संस्थाओ के साथ ही निजी शिक्षण संस्थाओ में भी आरक्षण प्रावधान लागू करने के लिए

94वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2006): जनजातीय लोगो के कल्याण के उद्देश्य से अनुच्छेद 164 के अंतर्गत झारखण्ड और छत्तीसगढ़ को भी शामिल करने हेतु इसके द्वारा यह की उक्त राज्यों में जनजातीय मंत्री रखने का प्रावधान होगा।

95वाँ संशोधन विधेयक (2010): संसद तथा विधानसभाओ में महिलाओ को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक राजसभा में पारित है, परन्तु लोकशभा में इसे पेश नहीं किया गया है।

96वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2011): उड़िया भाषा का ओड़िया भाषा में परिवर्तन किया गया।

97वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2012): अनुच्छेद 19 (1) (C) में ”सहकारी समितियां” शब्द को जोड़ा गया।

98वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2013): हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र को विकसित करने के लिए कर्नाटक के राजयपाल को अतिरिक्त शक्तियाँ प्रदान करने हेतु

99 वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2014): राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन।

103वाँ: जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा

108वाँ: महिलाओं के लिए लोकसभा व विधान सभा में 33% आरक्षण

109वाॅ: पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%

110वाॅ: स्थानीय निकाय में महिला आरक्षण 33% से 50%

114वाँ: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु 62 बर्ष से 65 बर्ष

115वाॅं: GST (वस्तु एवं सेवा कर)

117वाॅं: SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण

Pramukh Samvidhan Sanshodhan (निष्कर्ष)

यहाँ भारतीय संविधान के प्रमुख संशोधन के बारे ही चर्चा की गई है। यह परीक्षाओ की द्रष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण है। उम्मीदवारों को इसके बारे में जानकारी होनी ही चाहिए। हालाँकि यहाँ उल्लेखित सभी संविधान के संशोधन सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

यदि आपको भारतीय संविधान के प्रमुख संशोधन (Pramukh Samvidhan Sanshodhan) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न या सुझाब हो तो आप कमेंट करके पूछ सकते है। उम्मीदवार किसी भी नवीनतम अपडेट के लिए इस पृष्ठ के संपर्क में भी बने रहें। साथ ही उम्मीदवार स्टडी मटेरियल, नवीनतम जॉब्स, एडमिट कार्ड, और परीक्षा अलर्ट के संबंध में नवीनतम अपडेट प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

Q. संविधान में कितने संशोधन हो चुके हैं?

1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से अब तक 104 संशोधन हो चुके हैं।

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